सोमवार, 20 फ़रवरी 2017

पल पल घिसती जिंदगी

हर पल खुशी की चाह में
पल पल घिसती जिंदगी,

रोजमर्रा की चिक-चिक में

यों कुढ़ती सि जिंदगी,

अक्सर सोचता हूं मैं

तुम खुश क्यों नहीं हो ,

क्यों बिना बात की
बात पर झल्ला उठती हो

क्यों सबसे
नाखुश नाराज सी रहती हो

क्यों जीती हो कितने यथार्थ में ?

कोरी काल्पनिक ना सही
पर थोड़ी काल्पनिक तो बनो

माना कि नीरे कल्पना भरे
जीवन का अंत दुखद हो सकता है

पर क्या कल्पना बिना जीना
नीरस नहीं हो जाता ,

और जिस जीवन में रस नहीं
आनंद नहीं ,
वह जीवन
क्या जीवन कहने कहलाने योग्य है ?

यह भी माना कि
रस भोग का आमंत्रक है
और भोग विलास का ,

पर क्या इसीलिए हम
अपने जीवन को नीरस बना ले
की विलासिता तो गलत है (बाधित है)
हमारे मतानुसार ,

मुझसे पूछो तो कहूंगा
कि जीवन को
एक उत्सव बना लो

समस्याओं से विचलित नहीं होओगे ,

क्योंकि उत्सव तो आनंद देता है

और आनंद से परिपूर्ण होओगे तो
कुंठा निराशा अवसाद
खुद-ब-खुद भाग जाएगा...