रविवार, 5 मार्च 2017

बे-गुनाह

आज जाने क्यो

फिर वो

बेगुनाह सि लगती हैं

दिले -आराम कि

वही राह

पुरानी सी लगती हैं

फलक

बेवजह का गुस्सा भी

गजब था उसका ,

आज

इतनी वजहो पे भी

खामोश सि लगती हैं

मेरा गुनाह

तो ये था कि

मुझे उससे मुहब्बत हुइ,

मुझे जाने क्यो

आज वो फिर

बेगुनाह सि लगती हैं
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