सोमवार, 27 नवंबर 2017

हिदायत

अ फलक

मैरे कुछ अपनो के

मुझ पे अहसान है

इस कदर कि ,

मेरी तो

खाक को भी

ये हिदायत है कि

उनके लीबाज से

ना लिपटे ......!

सोमवार, 6 नवंबर 2017

फिजा

चंद पत्ते 

टूटे तो सोचा

फिज़ा छा गई

अब

बगिया वीरान हैं

तो सोचते हैं

पतझड़ अभी बाकी हैं ....

बुधवार, 18 अक्तूबर 2017

हम

हम

नस्तर नहीं

जो दिल में उतर जाऐगें....

एक

सर्द हवा का झोंका है,

सिरहन छोड़ जाएंगे...।

सोमवार, 28 अगस्त 2017

आरजू

जिंदगी

आरजुओं में 

बहकती गई  !

और आरजू 

पल-पल घुटती गई  !

आरजू 

मोहब्बत की हो 

या दौलत की ,

कमबख्त 

बहुत तड़पाती है  !

हमें भरम था 

कि संभाल लेंगे सब ,

और 

जिंदगी की रेत की मानिंद

फिसलती हि गई  !

समेट रहे थे 

हम तो

मोहब्बत के फसाने ,

और

उधर जिंदगी 

पल पल बिखरती गई ...।

.

शुक्रवार, 25 अगस्त 2017

जिक्र ना करना


तन्हा हूं 

पर ऐ दिल 

मेरी तनहाइयों का 

जिक्र न करना

परेशां भी हूं

पर मेरी

परेशानियों का भी 

जिक्र ना करना ,

मैं हारा हूं 

तो अपनों की ही जीत के लिए

फलक
मेरे तरकश के तीरों का

जिक्र ना करना ,

उसे शौक सितम का है 

तो बेशक करने दे 

तू उससे कभी 

मेरे जख्मों का 

जिक्र ना करना ,

यह जो हंसने का हुनर है 

ये सीखा है उसी से

तू मेरी हंसी में 

छुपे दर्द का 

जिक्र ना करना ,

किसी दिन
उसी का बयान था 

कि वो संगीन ए जिगर है 

तो संगीनों से 

उम्मीद ए वफ़ा का

ज़िक्र क्योंकर करना ...।

शुक्रवार, 11 अगस्त 2017

साफगोसी

रिस्ते

अक्सर टूट जाते हैं

साफगोसी से,

फिर भी

कम्बक्त "फलक"

से, 

कहना नहीं छुटता  !

जिक्र चला जब भी

मेरी बरबादीयों का,

ना जाने क्यूं

लोगों कि जुबां 

से, 

तेरा हि नाम 

नहीं छुटता...!


गुरुवार, 10 अगस्त 2017

अहसास

कभी कभी

तकलीफे

इस कदर बढ़ जाती हैं

कि दर्द का

अहसास हि

खत्म

हो जाता हैं

गुरुवार, 15 जून 2017

भावनाऐ

रिश्ते

बरकरार

रखना चाहते हो

तो

भावनाओं

को देखो.........

सम्भावनाओं को नही ! !

शुक्रवार, 21 अप्रैल 2017

दूरी

चाह कर भी ना  मिटी 

तुझसे ये दूरी, 

शायद हमारे

रिश्ते की जरूरत है

तुझसे यह दूरी ,

गर तुझसे  दूर ना होता

तो कैसे समझ पाता, 

कि कुछ और नहीं 

बस मेरी मजबूरी हैं

तुझसे ये दूरी,

फलक अक्सर हमें रुलाया है

इस जिक्र ने की, 

बहुत परेशान हैं वो

जब से हुई है तुझसे यह दूरी ,

ना कभी मंदिर में मांगी 

ना काबा में मांगी, 

फिर भी जाने क्यूं  

रब ने दे दी 

तुझसे यह दूरी ,

तुम सजदे करो 

तुम्हें नियामत मिली होगी ,

मैं क्यों कर रब को मनाऊं 

मुझे तो  दे दी 

तुझसे यह दूरी ,

तुम शौक से खुशी का मुखौटा लगा लो ,

मेरे तो मुखोटे पर भी 

नजर आएगी 

तुझसे यह दूरी ,

कौन नामुराद जीना चाहता है 

इन फासलों में ,

पर कमबख्त रुसवा हो जाएगी 

तुझसे यह दूरी... !

रविवार, 9 अप्रैल 2017

मेरे ना रहे

यकीन किया जिन पे ,

वो अब

यक़ीनन मेरे ना रहे !

खुद से ऐतबार उठ गया , 

जब से वह मेरे ना रहे  ! 

फलक उसके सिवा 

किसी का ना हो पाया 

अब तलक  

और

आंखों से ओझल होते ही ,

एक लम्हे में

वो मेरे ना रहे  !

नादान दिल अक्सर

बगावत करता है  इल्म  से  ,

उसे कैसे यकीन दिलाऊं

कि अब वो  मेरे ना रहे...!

शुक्रवार, 7 अप्रैल 2017

अ जिंदगी

कभी आईने सी

कटती जिंदगी

तो कभी अफसोस से

रूबरू होती जिंदगी,

कभी ख्यालों में खलल

तो कभी ख्यालों सी

मचलती जिंदगी,

कभी अपनों से 

दामन छुडाती सी

लगती है

तो कभी गैरों से

लिपटती सी जिंदगी,

कभी कायनात की 

धरोहर से लगती है

तो कभी कोडियो से भी

सस्ती सी ये जिंदगी,

कभी जज्बातों से खेलती  सी

तो कभी अरमानों को

रौंदती सी जिंदगी,

आखिर तू ही बता 

कि तू क्या है अ जिंदगी,

मैं तो बस

इतना जानता हूं

की मुझ बिन तू

और

तुझ बिन मैं

मुकम्मल नहीं है

जिंदगी...

रविवार, 5 मार्च 2017

बे-गुनाह

आज जाने क्यो

फिर वो

बेगुनाह सि लगती हैं

दिले -आराम कि

वही राह

पुरानी सी लगती हैं

फलक

बेवजह का गुस्सा भी

गजब था उसका ,

आज

इतनी वजहो पे भी

खामोश सि लगती हैं

मेरा गुनाह

तो ये था कि

मुझे उससे मुहब्बत हुइ,

मुझे जाने क्यो

आज वो फिर

बेगुनाह सि लगती हैं
....

सोमवार, 20 फ़रवरी 2017

पल पल घिसती जिंदगी

हर पल खुशी की चाह में
पल पल घिसती जिंदगी,

रोजमर्रा की चिक-चिक में

यों कुढ़ती सि जिंदगी,

अक्सर सोचता हूं मैं

तुम खुश क्यों नहीं हो ,

क्यों बिना बात की
बात पर झल्ला उठती हो

क्यों सबसे
नाखुश नाराज सी रहती हो

क्यों जीती हो कितने यथार्थ में ?

कोरी काल्पनिक ना सही
पर थोड़ी काल्पनिक तो बनो

माना कि नीरे कल्पना भरे
जीवन का अंत दुखद हो सकता है

पर क्या कल्पना बिना जीना
नीरस नहीं हो जाता ,

और जिस जीवन में रस नहीं
आनंद नहीं ,
वह जीवन
क्या जीवन कहने कहलाने योग्य है ?

यह भी माना कि
रस भोग का आमंत्रक है
और भोग विलास का ,

पर क्या इसीलिए हम
अपने जीवन को नीरस बना ले
की विलासिता तो गलत है (बाधित है)
हमारे मतानुसार ,

मुझसे पूछो तो कहूंगा
कि जीवन को
एक उत्सव बना लो

समस्याओं से विचलित नहीं होओगे ,

क्योंकि उत्सव तो आनंद देता है

और आनंद से परिपूर्ण होओगे तो
कुंठा निराशा अवसाद
खुद-ब-खुद भाग जाएगा...

शुक्रवार, 27 जनवरी 2017

मुबारकबाद

कैसे
मुबारकबाद
देदूं उसे,
जब
सांसें
हि थम
रही
हो अपनी,
थम तो
गई थी
मुद्दत पहले हि
जीन्दगी
अब तो
बस बोझ
सांसों
का बचा
हैं

तुम्हे समझ नहीं आता

मुझसे नहीं होता
कि मैं तुम्हें बुलाऊं
पर क्या तुम्हें
बुलाने के लिए
यही जरूरी रह गया है

क्या मेरा बेवजह का
गुस्सा तुम्हें समझ नहीं आता

क्या मेरा बोलते बोलते
यूं ही
चुप हो जाना
तुम्हें समझ नहीं आता

क्या मेरे दर्द पे
मेरा सर्द
सा मुस्कुरा देना
तुम नहीं समझते

मेरी इन आंखों का
खालीपन 
क्या तुम्हें
कुछ नहीं कह पाता

मेरी खामोशी में छुपी
तेरी आरजू भी
क्या तुम्हें महसूस नहीं होती

मेरी बिखरी बिखरी सी
जिंदगी को समेटने का
क्या तुम्हें कभी ख्याल नहीं आया

और गर
यह सब भी
तुम्हें समझ नहीं आता
तो क्या
लफ़्ज़ों के बयान से
मैं तुम्हें पा लूंगा...