अ फलक
मैरे कुछ अपनो के
मुझ पे अहसान है
इस कदर कि ,
मेरी तो
खाक को भी
ये हिदायत है कि
उनके लीबाज से
ना लिपटे ......!
अ फलक
मैरे कुछ अपनो के
मुझ पे अहसान है
इस कदर कि ,
मेरी तो
खाक को भी
ये हिदायत है कि
उनके लीबाज से
ना लिपटे ......!
जिंदगी
आरजुओं में
बहकती गई !
और आरजू
पल-पल घुटती गई !
आरजू
मोहब्बत की हो
या दौलत की ,
कमबख्त
बहुत तड़पाती है !
हमें भरम था
कि संभाल लेंगे सब ,
और
जिंदगी की रेत की मानिंद
फिसलती हि गई !
समेट रहे थे
हम तो
मोहब्बत के फसाने ,
और
उधर जिंदगी
पल पल बिखरती गई ...।
.
तन्हा हूं
पर ऐ दिल
मेरी तनहाइयों का
जिक्र न करना
परेशां भी हूं
पर मेरी
परेशानियों का भी
जिक्र ना करना ,
मैं हारा हूं
तो अपनों की ही जीत के लिए
फलक
मेरे तरकश के तीरों का
जिक्र ना करना ,
उसे शौक सितम का है
तो बेशक करने दे
तू उससे कभी
मेरे जख्मों का
जिक्र ना करना ,
यह जो हंसने का हुनर है
ये सीखा है उसी से
तू मेरी हंसी में
छुपे दर्द का
जिक्र ना करना ,
किसी दिन
उसी का बयान था
कि वो संगीन ए जिगर है
तो संगीनों से
उम्मीद ए वफ़ा का
ज़िक्र क्योंकर करना ...।
रिस्ते
अक्सर टूट जाते हैं
साफगोसी से,
फिर भी
कम्बक्त "फलक"
से,
कहना नहीं छुटता !
जिक्र चला जब भी
मेरी बरबादीयों का,
ना जाने क्यूं
लोगों कि जुबां
से,
तेरा हि नाम
नहीं छुटता...!
चाह कर भी ना मिटी
तुझसे ये दूरी,
शायद हमारे
रिश्ते की जरूरत है
तुझसे यह दूरी ,
गर तुझसे दूर ना होता
तो कैसे समझ पाता,
कि कुछ और नहीं
बस मेरी मजबूरी हैं
तुझसे ये दूरी,
फलक अक्सर हमें रुलाया है
इस जिक्र ने की,
बहुत परेशान हैं वो
जब से हुई है तुझसे यह दूरी ,
ना कभी मंदिर में मांगी
ना काबा में मांगी,
फिर भी जाने क्यूं
रब ने दे दी
तुझसे यह दूरी ,
तुम सजदे करो
तुम्हें नियामत मिली होगी ,
मैं क्यों कर रब को मनाऊं
मुझे तो दे दी
तुझसे यह दूरी ,
तुम शौक से खुशी का मुखौटा लगा लो ,
मेरे तो मुखोटे पर भी
नजर आएगी
तुझसे यह दूरी ,
कौन नामुराद जीना चाहता है
इन फासलों में ,
पर कमबख्त रुसवा हो जाएगी
तुझसे यह दूरी... !
यकीन किया जिन पे ,
वो अब
यक़ीनन मेरे ना रहे !
खुद से ऐतबार उठ गया ,
जब से वह मेरे ना रहे !
फलक उसके सिवा
किसी का ना हो पाया
अब तलक
और
आंखों से ओझल होते ही ,
एक लम्हे में
वो मेरे ना रहे !
नादान दिल अक्सर
बगावत करता है इल्म से ,
उसे कैसे यकीन दिलाऊं
कि अब वो मेरे ना रहे...!
कभी आईने सी
कटती जिंदगी
तो कभी अफसोस से
रूबरू होती जिंदगी,
कभी ख्यालों में खलल
तो कभी ख्यालों सी
मचलती जिंदगी,
कभी अपनों से
दामन छुडाती सी
लगती है
तो कभी गैरों से
लिपटती सी जिंदगी,
कभी कायनात की
धरोहर से लगती है
तो कभी कोडियो से भी
सस्ती सी ये जिंदगी,
कभी जज्बातों से खेलती सी
तो कभी अरमानों को
रौंदती सी जिंदगी,
आखिर तू ही बता
कि तू क्या है अ जिंदगी,
मैं तो बस
इतना जानता हूं
की मुझ बिन तू
और
तुझ बिन मैं
मुकम्मल नहीं है
अ जिंदगी...
आज जाने क्यो
फिर वो
बेगुनाह सि लगती हैं
दिले -आराम कि
वही राह
पुरानी सी लगती हैं
फलक
बेवजह का गुस्सा भी
गजब था उसका ,
आज
इतनी वजहो पे भी
खामोश सि लगती हैं
मेरा गुनाह
तो ये था कि
मुझे उससे मुहब्बत हुइ,
मुझे जाने क्यो
आज वो फिर
बेगुनाह सि लगती हैं
....
हर पल खुशी की चाह में
पल पल घिसती जिंदगी,
रोजमर्रा की चिक-चिक में
यों कुढ़ती सि जिंदगी,
अक्सर सोचता हूं मैं
तुम खुश क्यों नहीं हो ,
क्यों बिना बात की
बात पर झल्ला उठती हो
क्यों सबसे
नाखुश नाराज सी रहती हो
क्यों जीती हो कितने यथार्थ में ?
कोरी काल्पनिक ना सही
पर थोड़ी काल्पनिक तो बनो
माना कि नीरे कल्पना भरे
जीवन का अंत दुखद हो सकता है
पर क्या कल्पना बिना जीना
नीरस नहीं हो जाता ,
और जिस जीवन में रस नहीं
आनंद नहीं ,
वह जीवन
क्या जीवन कहने कहलाने योग्य है ?
यह भी माना कि
रस भोग का आमंत्रक है
और भोग विलास का ,
पर क्या इसीलिए हम
अपने जीवन को नीरस बना ले
की विलासिता तो गलत है (बाधित है)
हमारे मतानुसार ,
मुझसे पूछो तो कहूंगा
कि जीवन को
एक उत्सव बना लो
समस्याओं से विचलित नहीं होओगे ,
क्योंकि उत्सव तो आनंद देता है
और आनंद से परिपूर्ण होओगे तो
कुंठा निराशा अवसाद
खुद-ब-खुद भाग जाएगा...
कैसे
मुबारकबाद
देदूं उसे,
जब
सांसें
हि थम
रही
हो अपनी,
थम तो
गई थी
मुद्दत पहले हि
जीन्दगी
अब तो
बस बोझ
सांसों
का बचा
हैं
मुझसे नहीं होता
कि मैं तुम्हें बुलाऊं
पर क्या तुम्हें
बुलाने के लिए
यही जरूरी रह गया है
क्या मेरा बेवजह का
गुस्सा तुम्हें समझ नहीं आता
क्या मेरा बोलते बोलते
यूं ही
चुप हो जाना
तुम्हें समझ नहीं आता
क्या मेरे दर्द पे
मेरा सर्द
सा मुस्कुरा देना
तुम नहीं समझते
मेरी इन आंखों का
खालीपन
क्या तुम्हें
कुछ नहीं कह पाता
मेरी खामोशी में छुपी
तेरी आरजू भी
क्या तुम्हें महसूस नहीं होती
मेरी बिखरी बिखरी सी
जिंदगी को समेटने का
क्या तुम्हें कभी ख्याल नहीं आया
और गर
यह सब भी
तुम्हें समझ नहीं आता
तो क्या
लफ़्ज़ों के बयान से
मैं तुम्हें पा लूंगा...