शुक्रवार, 27 मार्च 2020

अश्क

थे कभी जिनकी नजरों में 
अपने ही अक्स कि तरहां, 
आज गिरे हैं उन्हीं की 
नजरों से अश्क की तरहां ! 

नजरों से गिरे हुए अश्क की 
कीमत ही क्या है,
ये हम कभी ना समझ सके 
दीवानों की तरहां ! 

 सावन हर बार आता था 
  सबके पास मगर ,
  मैं तड़पता रहा 
सूखे रेगिस्तानो की तरहां !

 मेरे यार अब उस से 
 क्या शिकवा शिकायत करनी,
 वो तो हमें अब देखने लगे हैं 
  अनजानो की तरहां !   

'फलक ' देख गिर गया मैं 
उसकी नजर में तमाम ,
आलम भुला दिया 
जिसके लिए परवानों की तरहां !