जिंदगी
आरजुओं में
बहकती गई !
और आरजू
पल-पल घुटती गई !
आरजू
मोहब्बत की हो
या दौलत की ,
कमबख्त
बहुत तड़पाती है !
हमें भरम था
कि संभाल लेंगे सब ,
और
जिंदगी की रेत की मानिंद
फिसलती हि गई !
समेट रहे थे
हम तो
मोहब्बत के फसाने ,
और
उधर जिंदगी
पल पल बिखरती गई ...।
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