सोमवार, 28 अगस्त 2017

आरजू

जिंदगी

आरजुओं में 

बहकती गई  !

और आरजू 

पल-पल घुटती गई  !

आरजू 

मोहब्बत की हो 

या दौलत की ,

कमबख्त 

बहुत तड़पाती है  !

हमें भरम था 

कि संभाल लेंगे सब ,

और 

जिंदगी की रेत की मानिंद

फिसलती हि गई  !

समेट रहे थे 

हम तो

मोहब्बत के फसाने ,

और

उधर जिंदगी 

पल पल बिखरती गई ...।

.

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