तन्हा हूं
पर ऐ दिल
मेरी तनहाइयों का
जिक्र न करना
परेशां भी हूं
पर मेरी
परेशानियों का भी
जिक्र ना करना ,
मैं हारा हूं
तो अपनों की ही जीत के लिए
फलक
मेरे तरकश के तीरों का
जिक्र ना करना ,
उसे शौक सितम का है
तो बेशक करने दे
तू उससे कभी
मेरे जख्मों का
जिक्र ना करना ,
यह जो हंसने का हुनर है
ये सीखा है उसी से
तू मेरी हंसी में
छुपे दर्द का
जिक्र ना करना ,
किसी दिन
उसी का बयान था
कि वो संगीन ए जिगर है
तो संगीनों से
उम्मीद ए वफ़ा का
ज़िक्र क्योंकर करना ...।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें