शुक्रवार, 21 अप्रैल 2017

दूरी

चाह कर भी ना  मिटी 

तुझसे ये दूरी, 

शायद हमारे

रिश्ते की जरूरत है

तुझसे यह दूरी ,

गर तुझसे  दूर ना होता

तो कैसे समझ पाता, 

कि कुछ और नहीं 

बस मेरी मजबूरी हैं

तुझसे ये दूरी,

फलक अक्सर हमें रुलाया है

इस जिक्र ने की, 

बहुत परेशान हैं वो

जब से हुई है तुझसे यह दूरी ,

ना कभी मंदिर में मांगी 

ना काबा में मांगी, 

फिर भी जाने क्यूं  

रब ने दे दी 

तुझसे यह दूरी ,

तुम सजदे करो 

तुम्हें नियामत मिली होगी ,

मैं क्यों कर रब को मनाऊं 

मुझे तो  दे दी 

तुझसे यह दूरी ,

तुम शौक से खुशी का मुखौटा लगा लो ,

मेरे तो मुखोटे पर भी 

नजर आएगी 

तुझसे यह दूरी ,

कौन नामुराद जीना चाहता है 

इन फासलों में ,

पर कमबख्त रुसवा हो जाएगी 

तुझसे यह दूरी... !

रविवार, 9 अप्रैल 2017

मेरे ना रहे

यकीन किया जिन पे ,

वो अब

यक़ीनन मेरे ना रहे !

खुद से ऐतबार उठ गया , 

जब से वह मेरे ना रहे  ! 

फलक उसके सिवा 

किसी का ना हो पाया 

अब तलक  

और

आंखों से ओझल होते ही ,

एक लम्हे में

वो मेरे ना रहे  !

नादान दिल अक्सर

बगावत करता है  इल्म  से  ,

उसे कैसे यकीन दिलाऊं

कि अब वो  मेरे ना रहे...!

शुक्रवार, 7 अप्रैल 2017

अ जिंदगी

कभी आईने सी

कटती जिंदगी

तो कभी अफसोस से

रूबरू होती जिंदगी,

कभी ख्यालों में खलल

तो कभी ख्यालों सी

मचलती जिंदगी,

कभी अपनों से 

दामन छुडाती सी

लगती है

तो कभी गैरों से

लिपटती सी जिंदगी,

कभी कायनात की 

धरोहर से लगती है

तो कभी कोडियो से भी

सस्ती सी ये जिंदगी,

कभी जज्बातों से खेलती  सी

तो कभी अरमानों को

रौंदती सी जिंदगी,

आखिर तू ही बता 

कि तू क्या है अ जिंदगी,

मैं तो बस

इतना जानता हूं

की मुझ बिन तू

और

तुझ बिन मैं

मुकम्मल नहीं है

जिंदगी...