चाह कर भी ना मिटी
तुझसे ये दूरी,
शायद हमारे
रिश्ते की जरूरत है
तुझसे यह दूरी ,
गर तुझसे दूर ना होता
तो कैसे समझ पाता,
कि कुछ और नहीं
बस मेरी मजबूरी हैं
तुझसे ये दूरी,
फलक अक्सर हमें रुलाया है
इस जिक्र ने की,
बहुत परेशान हैं वो
जब से हुई है तुझसे यह दूरी ,
ना कभी मंदिर में मांगी
ना काबा में मांगी,
फिर भी जाने क्यूं
रब ने दे दी
तुझसे यह दूरी ,
तुम सजदे करो
तुम्हें नियामत मिली होगी ,
मैं क्यों कर रब को मनाऊं
मुझे तो दे दी
तुझसे यह दूरी ,
तुम शौक से खुशी का मुखौटा लगा लो ,
मेरे तो मुखोटे पर भी
नजर आएगी
तुझसे यह दूरी ,
कौन नामुराद जीना चाहता है
इन फासलों में ,
पर कमबख्त रुसवा हो जाएगी
तुझसे यह दूरी... !