यकीन किया जिन पे ,
वो अब
यक़ीनन मेरे ना रहे !
खुद से ऐतबार उठ गया ,
जब से वह मेरे ना रहे !
फलक उसके सिवा
किसी का ना हो पाया
अब तलक
और
आंखों से ओझल होते ही ,
एक लम्हे में
वो मेरे ना रहे !
नादान दिल अक्सर
बगावत करता है इल्म से ,
उसे कैसे यकीन दिलाऊं
कि अब वो मेरे ना रहे...!
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