रविवार, 9 अप्रैल 2017

मेरे ना रहे

यकीन किया जिन पे ,

वो अब

यक़ीनन मेरे ना रहे !

खुद से ऐतबार उठ गया , 

जब से वह मेरे ना रहे  ! 

फलक उसके सिवा 

किसी का ना हो पाया 

अब तलक  

और

आंखों से ओझल होते ही ,

एक लम्हे में

वो मेरे ना रहे  !

नादान दिल अक्सर

बगावत करता है  इल्म  से  ,

उसे कैसे यकीन दिलाऊं

कि अब वो  मेरे ना रहे...!

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